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कोरोना संकट: समुदाय को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने में जुटे हैं सामुदायिक रेडियो

Sonia chopada सोनिया चोपड़ा
Updated Fri, 19 Jun 2020 09:01 AM IST
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सामुदायिक रेडियो समुदायों को सशक्त बनाने का सबसे सशक्त माध्यम है। - फोटो : फाइल फोटो
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कोरोना महामारी के संक्रमण से बचाने, अफवाहों से सचेत रहने व आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धता सुनिश्चित कराने के लिए देशभर के सामुदायिक रेडियो महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।



कोरोना जैसी भयावह बीमारी के संक्रमण को रोकने के लिए जब केन्द्र सरकार द्वारा 24 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा से ग्रामीण समुदायों में खलबली मच गई थी क्योंकि ग्रामीण समुदाय इस प्रकार के अप्रत्याशित कदम के लिए तैयार नहीं थे।


ऐसे में सामुदायिक रेडियो ग्रामीण समुदायों की मदद के लिए आगे आए और उनकी समस्याओं, जरूरतों को शासन-प्रशासन तक पहुंचाया ताकि जरूरतमंदों को राशन एवं अन्य रोजमर्रा की जरूरत की चीजें पहुंचाई जा सकें।
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लॉकडाउन के दौरान उन्हें संक्रमण एवं अफवाहों से बचने के लिए सचेत करने, उनका मनोबल बढ़ाने के लिए कई प्रकार के शिक्षाप्रद कार्यक्रमों के साथ ही लोकसंगीत एवं लोकगाथाओं का प्रसारण भी किया।
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लेकिन इस सब के बावजूद इन रेडियो स्टेशनों के संचालकों की पीड़ा यह है कि पिछले दो वर्षों से सरकार की तरफ से इन्हें किसी प्रकार के विज्ञापन या सहायता मुहैया नहीं कराई गई है, जबकि विपदा के समय में भी ज्यादातर सामुदायिक रेडियो स्टेशन सीमित संसाधनों के बावजूद समुदायों की सेवा में निरंतर अपनी भूमिका निभाते आ रहे हैं।

सामुदायिक रेडियो समुदायों को सशक्त बनाने का सबसे सशक्त माध्यम है। यही कारण है कि सरकार सामुदायिक रेडियो की संख्या बढ़ाने पर बल दे रही है। हाल ही के एक सर्वेक्षण में यह बात का खुलासा हुआ है कि टेलीविजन के बाद रेडियो सूचना और मनोरंजन का सबसे सशक्त माध्यम है।
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सातवें सामुदायिक रेडियो सम्मेलन के अवसर पर सूचना एवं प्रसारण मंत्री ने सामुदायिक रेडियो स्टेशनों के कार्यों एवं उनके उत्साह की प्रशंसा की थी और कहा था कि सामुदायिक रेडियो समाज को सशक्त बनाने का काम कर रहा है।

आपदाओं के वक्त सूचनाओं को तेजी से पहुंचाने में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण है। इसी अवसर पर मौजूद सूचना एवं प्रसारण सचिव ने भी सामुदायिक रेडियो की प्रासंगिकता को रेखांकित किया था और कहा था कि देश के प्रत्येक जिले में एक सामुदायिक रेडियो स्टेशन होना चाहिए।

दरअसल, केन्द्र सरकार सामुदायिक रेडियो की संख्या बढ़ाकर 500 तक करना चाहती है और इसी कड़ी में गत वर्ष सामुदायिक रेडियो के लिए 118 नए लाइसेंस जारी किए गए हैं लेकिन इस सब के बावजूद अभी तक केवल 289 सामुदायिक रेडियो स्टेशन ही अस्तित्व में आ पाए हैं।

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रेडियो एक बड़े समाज को जोड़ता है। - फोटो : अमर उजाला
सामुदायिक रेडियो की अवधारणा आकाशवाणी की रेडियो सेवा को ध्यान में रखकर की गई थी। आकाशवाणी सरकारी तंत्र की सहायता से सूचनाओं का अदान-प्रदान करने के साथ-साथ गीत-संगीत, साक्षात्कार तथा परिचर्चाओं के जरिए जनता से रूबरू होता था और यही एकमात्र सूचना, संगीत और मनोरंजन का साधन था।

आकाशवाणी और दूरदर्शन के जरिए दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार की आवाज तो पहुंच जाती थी लेकिन समुदाय की आवाज की आवाज को अपनी बात रखने का प्लेटफार्म नहीं मिल पाता था। समुदाय को विकास योजनाओं से जोड़ने तथा योजनाओं में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने तथा उनकी प्रमुख आवश्यकताओं को बारे में शासन-प्रशासन अनभिज्ञ रहता था।

समय के साथ-साथ ग्रामीण समुदायों के जोड़ने की पहल हुई और पंचायतों को सशक्त बनाने के लिए अधिक अधिकार दिए गए ताकि पंचायतों के जरिए सरकारी योजनाओं का लाभ हर अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे और ऐसा हुआ भी है लेकिन जानकारी एवं साक्षरता के अभाव में समाज के कई तबके पीछे छूट गए हैं।

समाज के हर अंतिम व्यक्ति तक सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाने और जागरूक तथा शिक्षित बनाने के उद्देश्यों ने सामुदायिक रेडियो की परिकल्पना को साकार किया है। सामुदायिक रेडियो विशुद्ध रूप से समाज सेवा के मकसद से चलाए जा रहे हैं।

यह शैक्षणिक संस्थानों तथा गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा समाज के विभिन्न वर्गों के उत्थान के उद्देश्यों से चलाए रहे हैं और इनका सबसे बड़ा प्रभाव यह हुआ है कि यह समुदायों की सशक्त आवाज बनकर क्षेत्रीय विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

अखबारों, इलैक्ट्रॉनिक चैनलों और कमर्शियल गीत-संगीत एफ.एम. चैनलों की भरमार के बीच लोकप्रिय होते सामुदायिक रेडियो यह साबित करते हैं कि यह समाज के अंतिम छोर तक के समुदायों और शासन-प्रशासन तथा सरकार के बीच संवाद का सशक्त माध्यम बनकर उभरे हैं।

सामुदायिक रेडियो एक ओर जहां लोगों को जागरुक करने का काम कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ आम लोगों की आवाज बनकर उनकी समस्याओं को शासन-प्रशासन तथा सरकार तक पहुंचाने में मदद कर रहे हैं। यह समुदायों को आपस में जोड़ने तथा सामुदायिक भावना से सामूहिक निर्णय लेने समुदायों को प्रेरित कर रहे हैं।

गांव के विकास में सामुदायिक रेडियो की भूमिका बढ़ी है। सामुदायिक रेडियो को हम इन शब्दों में परिभाषित कर सकते हैं कि "यह जनता के लिए जनता द्वारा, जनता का है।" सामुदायिक रेडियो का स्वरूप लोकतांत्रिक है जिसमें हर व्यक्ति को बोलने, सुनने और कार्यक्रम बनाने की पूरी छूट है।

रेडियो संचार का एक ऐसा माध्यम है जिससे ग्रामीणों के विकास और सशक्तिकरण की राह खुलती है और निरक्षर भी अपनी भागीदारी निभा सकते हैं।

इसके ग्रामीण न केवल श्रोता हैं, बल्कि कार्यक्रम निर्माण में भी उनकी प्रमुख भूमिका होती है। रेडियो के माध्यम से ग्रामीणों को विभिन्न सरकारी योजनाओं, पंचायती राज और ग्रामीण विकास जैसे मुद्दों पर स्थानीय भाषा में जानकारी मिल रही है।

रेडियो एक ऐसा माध्यम है, जो सस्ता है और इसकी पहुंच सब लोगों तक है। जहां भी सामुदायिक रेडियो स्थापित हुए हैं वहां ज्यादातर ग्रामीणों के पास रेडियो सेट हैं और अब तो सभी मोबाइल में एफ. एम. रेडियो मौजूद है जिससे अब यह हर ग्रामीण की पहुंच में है और वे बड़े गर्व से अपने सामुदायिक रेडियो को सुनते हैं।

उन्हें लगता है कि यह उनका अपना रेडियो है, जहां वे अपनी बात अपनी भाषा में आसानी से रख सकते हैं क्योंकि इनके ज्यादातर प्रस्तोता उनके ही आसपास के गांवों से हैं जो उन्हें उनकी बात उनकी भाषा में न सिर्फ सुनाते हैं बल्कि समझाते भी हैं।

अक्सर देखा जाता है कि पारंपरिक मीडिया मसलन टी.वी. और अखबारों में ग्रामीण खबरों, समस्याओं और मुद्दों का अभाव रहता है। ऐसे में सामुदायिक रेडियो ग्रामीण भारत को शहरी भारत से जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं।

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इस मामले में ग्रामीण क्षेत्रों की हालत और ज्यादा खराब है। - फोटो : Pixabay
कोरोना वायरस महामारी और लॉकडाउन के बीच शहरी क्षेत्रों के स्कूलों ने बच्चों को विभिन्न ऑनलाइन प्लेटफार्म के जरिए पढ़ाई शुरू करवा दी है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों की पढ़ाई सर्वाधिक प्रभावित हो रही है।

लोकल सर्कल नामक संस्था द्वारा के हालिया सर्वे में 203 जिलों के 23 हजार लोगों ने हिस्सा लिया, जिनमें से 43% लोगों ने कहा कि ऑनलाइन क्लासेस के लिए उनके पास कम्प्यूटर, टेबलेट, प्रिंटर, राउटर जैसी चीजें नहीं है।

इस मामले में ग्रामीण क्षेत्रों की हालत और ज्यादा खराब है। ग्रामीण इलाकों में प्रति सौ लोगों पर केवल 21.76 व्यक्ति के पास इंटरनेट है और स्मार्टफ़ोन और हाईस्पीड इंटरनेट तो मात्र 8-10 प्रतिशत के पास है तो बच्चे पढ़ेंगे कैसे?

ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों की मदद के लिए देशभर में स्थित विभिन्न सामुदायिक रेडियो आगे आये हैं और अपना एक घंटे-दो घंटे का स्लॉट बच्चों की पढ़ाई के लिए शुरू किया है और कई जगह पढ़ाई शुरू हो चुकी है।

हरियाणा के नूंह जिले में हाशिए पर खड़े समुदायों को विकास की मुख्यधारा में शामिल करने और सामुदायिक गतिविधियों में हर स्तर पर उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए घाघस ब्लॉक में सहगल फाउंडेशन द्वारा "अल्फाज-ए-मेवात" सामुदायिक रेडियो वर्ष 2012 में स्थापित किया गया है जो पिछले 8 वर्षों से अनवरत जारी है।

रेडियो कोरोना वायरस जैसी विश्वव्यापी महामारी के दौरान भी समुदाय को जागरूक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

कोरोना महामारी और लॉकडाउन के दौरान रेडियो ने जिला शिक्षा विभाग एवं स्कूल प्रशासन से सामुदायिक रेडियो के जरिए बच्चों की पढ़ाई निरंतर जारी रखने का आग्रह किया है ताकि लॉकडाउन और महामारी के बीच भी बच्चों की शिक्षा प्रभावित न हो।

रेडियो अपने शुरूआती दौर से ही बच्चों को “रेडियो स्कूल” और “स्कूल चलें हम" जैसे कार्यक्रमों के जरिए अंग्रेजी की बुनियादी शिक्षा देने के साथ ही हर बच्चे को अनिवार्य शिक्षा देने पर बल देता आ रहा है। रेडियो जिले के 225 गांवों के ग्रामीणों को विभिन्न सूचनापरक और मनोरंजन कार्यक्रमों के साथ-साथ शिक्षा, चिकित्सा, स्वच्छता, जल संरक्षण एवं एवं संचयन, कृषि, पर्यावरण तथा आजीविका से जुड़े मुद्दों पर जानकारी देता है।

रेडियो समुदाय के हर वर्ग मसलन बच्चों, महिलाओं, किसानों, किशोरों तथा वृद्ध लोगों से विभिन्न कार्यक्रमों के जरिए जुड़ा है। रेडियो के माध्यम से विभिन्न सरकारी योजनाओं, पंचायती राज और ग्रामीण विकास जैसे मुद्दों पर स्थानीय भाषा में कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं।

हरियाणा के नूंह जिले के गांवों में डिजिटल इंडिया के इस दौर में भी बहुत कम घरों में टेलीविजन हैं। ऐसे में जो महिलाऐं पढ़ना-लिखना नहीं जानती, वह रेडियो सुनकर सारी जानकारियां प्राप्त हैं।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।


 
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