अलवर के प्राइवेट स्कूलों से बच्चों को निकाल इस सरकारी स्कूल में कराना चाह रहे हैं एडमिशन
अलवर के राजकीय सीनियर सैकेंडरी स्कूल (Government Senior Secondary School) अब निजी स्कूलों (Private Schools) को भी मात ...अधिक पढ़ें
- News18 Rajasthan
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अलवर. अलवर जिले में सरकारी स्कूलों का हो रहा कायाकल्प, अब देशभर में मिशाल बनता जा रहा है. अलवर जिले में एजुकेशन एक्सप्रेस, हेलिकॉप्टर डिजिटल क्लास रूम के बाद अब स्वच्छता वाहिनी के रूप में स्कूल को देश मे मॉडल के रूप में विकसित किया गया है. यह सब लोगो के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया है. छह महीने पहले इस स्कूल में पढ़ने वाले छात्र, छात्राओं ओर अध्यापकों ने सपने में भी नही सोचा था कि उनका स्कूल मॉडल स्कूल के रूप में देशभर में पहचान बना लेगा और उन्हें गौरवांवित होंने का अवसर मिलेगा. राजकीय सीनियर सैकेंडरी स्कूल (Government Senior Secondary School) अब निजी स्कूलों (Private Schools) को भी मात दे रहा है. यही वजह है कि अब ग्रामीण अपने बच्चों को निजी स्कूल से निकाल कर वापिस सरकारी स्कूल में डालना चाह रहे हैं.
जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यह स्कूल
अलवर जिला मुख्यालय से करीब 10 किलोमीटर दूर स्थित राजकीय उच्च मध्यमिक विधालय उमरैण की छह महीने के पहले की तस्वीरें देंखे तो दुर्दशा की कहानी खुद ब खुद बयान होने लगती है. स्कूल के कमरे जर्जर हालत में थे. छात्रों के टॉयलेट की हालत ऐसी थी कि यहां खड़ा होना भी मुश्किल था. इस स्कूल में ग्रामीणों की भैस भी बंधी हुई नजर आती थी. लेकिन छह महीने में ऐसा क्या हुआ कि इस स्कूल की तस्वीर बिल्कुल बदल गई.
इंजीनियर राजेश लवानिया और सहगल फाउंडेशन की मदद से हुआ कायाकल्प
समग्र शिक्षा अभियान के इंजीनियर राजेश लवानिया की क्रिएटिव सोच के चलते और सहगल फाउंडेशन से आर्थिक मदद लेकर ओर ग्रामीणों से चंदा लेकर इस स्कूल को मॉडल स्कूल में तब्दील कर दिया गया है. आज इस स्कूल में वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम डवलप किया गया है जिससे बच्चो को पानी के लिए कहीं भटकना नही पड़ता है. स्कूल में बारिश के लिए लाखों लीटर पानी को जमा कर उसको ही सालभर उपयोग में लिया जाएगा.
प्रधानाचार्य सुमन यादव का कहना है कि इस स्कूल में पहले ऐसा एक भी कमरा नहीं था जिसकी छत ना टपकती हो, लेकिन सहगल फाउंडेशन ने पूरा कायाकल्प कर दिया.
स्कूल की प्रिंसिपल का ये है कहना...
स्कूल की प्रिंसिपल सुमन यादव का कहना है कि जब उन्होंने इस स्कूल में 3 साल पहले प्रिंसिपल का पद संभाला था, तब यह सड़क से करीब चार, पांच फीट गहराई में था, जिसमें बारिश का पानी जमा हो जाता था. बारिश के दिनों में दीवार में सीलन आ जाती थी और छत पकने के कारण बच्चों को यहां बैठाना खतरे से भरा लगता था. उन्होंने कहा कि सहगल फाउंडेशन और शिक्षा विभाग के समग्र शिक्षा अभियान के इंजीनियर राजेश लवानिया की मेहनत की बदौलत आज यह स्कूल मॉडल स्कूल के रूप में बन पाई है. इस स्कूल में स्वच्छता बाहरी आकर्षण का केंद्र है.
'अब यह स्कूल किसी पर्यटन स्थल जैसा दिखता है'
प्रधानाचार्य सुमन यादव का कहना है कि फिलहाल स्कूल में 369 बच्चों का नामांकन है. इस सरकारी स्कूल में पहले ऐसा एक भी कमरा नहीं था जिसकी छत ना टपकती हो, लेकिन सहगल फाउंडेशन ने स्कूल में बदलाव का बड़ा काम अपने हाथ में लिया. स्कूल में बालिकाओं के शौचालय की भी व्यवस्था नहीं थी. अब यह स्कूल किसी पर्यटन स्थल जैसा दिखता है. पूरे स्कूल भवन और परिसर को रिनोवेट किया गया और बारिश के पानी को बचाने के लिए रिचार्ज वैल बनाए गए हैं. छतों के पानी को वाटर हार्वेस्टिंग से जोड़ा गया है.
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